सोनू सूद इंटरव्यू :-
सोनू सूद ने कहा: 'इन लोगों की मदद करना कोई आइडिया नहीं है,ज़रूरत है।ये वो लोग हैं जिन्होंने हमारे घर बनाए हैं,हमारी सड़कें बनाई हैं।इनको घर पहुंचाना बहुत ज़रूरी है।'"वो बच्चा 500 किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर तो पहुंच जाएगा लेकिन कल को जब वो बड़ा होगा तो 500 किलोमीटर का ये सफर पूरी ज़िंदगी उसके जेहन में रहेगा।उस चीज़ को मिटाने के लिए या फिर उसे ये कभी याद ही न रखना पड़े,इसके लिए मैं आगे आया।"
"मुझे डर लगता है कि कहीं मैं किसी ज़रूरतमंद का ट्वीट मिस न कर दूं तो रात को भी जब दो-तीन बजे मेरी नींद खुलती है तो मैं फोन उठाकर देखता हूं कि कहीं कोई बहुत ज़रूरतमंद इंसान तो नहीं।कल हमने बहुत सारे लोग गोंडा,बस्ती,मधुबनी,सीतामढ़ी,प्रतापगढ़ बहुत जगह भेजे।उसमें से 8-10 लोग रह गए क्योंकि वो देर से पहुंचे तो रात को पौने बारह बजे हमने अरेंजमेंट किया और खुद मेरे दोस्त टैंपो चलाकर उन्हें वहां पहुंचाकर आए जहां उन्हें जाना था।हमारे परिवारवाले कहीं फंसे हों और अगर हम उनके लिए हम जितनी मेहनत करें,उतनी ही मेहनत हमें इनके लिए करनी पड़ेगी,तभी ये घर पहुंच पाएंगे।"
"मैं बसें रवाना करने से पहले बस में चढ़कर उनसे पूछता हूं,दोस्त वापस तो आओगे ना..??वो कहते हैं,हम पक्का वापस आएंगे।आपसे नहीं मिलते तो शायद वापस नहीं आते मगर आपने जिस प्यार से हमें भेजा है,तो अब हम वापस ज़रूर आएंगे।मैं भी कहता हूं कि वापस आकर पक्का मुझसे मिलना।जब हम इनका हाथ थामते हैं तो जो विश्वास की कड़ी है वो न सिर्फ़ इन तक बल्कि पूरे हिंदुस्तान तक पहुंचती है।इनका वापस आना बहुत ज़रूरी है क्योंकि अगर ये लोग वापस नहीं आए तो शहर भी गांव ही बन जाएंगे क्योंकि जब तक धड़कन शरीर के अंदर नहीं आएगी तो दिल धड़केगा कैसे।"
"अगर एक इंसान को मैं परमिशन लेकर बाहर भेजता हूं तो पहले तो उसका मेडिकल करवाना होता है,फिर लोकल पुलिस स्टेशन से ओके होता है,फिर वो डीसीपी ऑफिस जाता है,डीसीपी ऑफिस से उस स्टेट में डीएम के ऑफिस जाता है,जहां उस आदमी को जाना है।फिर वहां उसे डीएम साइन करता है।वहां से वो डीसीपी ऑफिस वापस आता है। वहां से वापस पुलिस स्टेशन और फिर वो ओके होता है।तब उस इंसान को बाहर ट्रैवल करने के लिए परमिशन मिलती है।तो जब ये सब लोग जिनको फ़ॉर्म भरना नहीं आता,वो कहां से ये सब प्रॉसेस करेंगे।तो ये बहुत लंबा प्रॉसेस है तो चलो मैंने तो किया।मैं तो चलो उसको ऑर्गनाइज़ कर पाया।मैं ये जानता हूं कि कहना बहुत आसान है।जब आप एक सिस्टम चलाते हैं तो उसके कुछ रूल होते हैं,कुछ बाधाएं होती हैं लेकिन आपको ये समझना चाहिए कि हम जिस दौर में रह रहे हैं,जिस माहौल में रह रहे हैं,वहां पर कोई रूल्स और रेगुलेशन नहीं रहे।अगर आप इन्हें घर नहीं जाने देंगे तो या तो ये पैदल चले जाएंगे या तो ये सड़कों पर बैठ जाएंगे। या ये ट्रक्स पर बैठकर चले जाएंगे ये लेकिन ये घर जाएंगे ज़रूर।तो इन्हें रोकना नहीं चाहिए घर जाने से इनकी हेल्प करनी चाहिए , इन्हें मौका देना चाहिए,ताकि ये घर जा सकें।"
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